श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 118: मूर्तिमान् अग्निदेव का सीता को लेकर चिता से प्रकट होना और श्रीराम को समर्पित करके उनकी पवित्रता को प्रमाणित करना तथा श्रीराम का सीता को सहर्ष स्वीकार करना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  6.118.13 
 
 
अवश्यं चापि लोकेषु सीता पावनमर्हति।
दीर्घकालोषिता हीयं रावणान्त:पुरे शुभा॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  अवश्य ही लोगों में सीता की पवित्रता को प्रमाणित करना आवश्यक था, क्योंकि शुभ लक्षणों वाली सीता को रावण के अंतःपुर में लंबे समय तक रहना पड़ा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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