श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 117: भगवान् श्रीराम के पास देवताओं का आगमन तथा ब्रह्मा द्वारा उनकी भगवत्ता का प्रतिपादन एवं स्तवन  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  6.117.26 
 
 
अग्नि: कोप: प्रसादस्ते सोम: श्रीवत्सलक्षण:।
त्वया लोकास्त्रय: क्रान्ता: पुरा स्वैर्विक्रमैस्त्रिभि:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  ओह भगवान विष्णु, अग्नि आपका कोप हैं, चंद्रमा आपकी प्रसन्नता हैं और आपके सीने पर श्रीवत्स का चिह्न विराजमान हैं। पूर्वकाल में आपने ही तीन कदमों से तीनों लोकों को नापा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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