श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 116: सीता का श्रीराम को उपालम्भपूर्ण उत्तर देकर अपने सतीत्व की परीक्षा देने के लिये अग्नि में प्रवेश करना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.116.25 
 
 
यथा मे हृदयं नित्यं नापसर्पति राघवात्।
तथा लोकस्य साक्षी मां सर्वत: पातु पावक:॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि मेरा हृदय कभी भी भगवान श्री रघुनाथ जी (भगवान राम) से दूर नहीं हुआ है तो संपूर्ण जगत् के साक्षी अग्निदेव मुझे हर ओर सभी खतरों से बचाएँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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