श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 115: सीता के चरित्र पर संदेह करके श्रीराम का उन्हें ग्रहण करने से इनकार करना और अन्यत्र जाने के लिये कहना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.115.25 
 
 
तत: प्रियार्हश्रवणा तदप्रियं
प्रियादुपश्रुत्य चिरस्य मानिनी।
मुमोच बाष्पं रुदती तदा भृशं
गजेन्द्रहस्ताभिहतेव वल्लरी॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रियतम के मधुर वचन सुनने की आदी मानिनी सीता ने चिरकाल पश्चात जब प्रियतम के मुख से ऐसी अप्रिय बातें सुनीं तो वे आहत होकर हाथी की सूँड़ से आहत हुई लता की तरह आँसू बहाने लगीं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पञ्चदशाधिकशततम: सर्ग: ॥ १ १५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ पंद्रहवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ १५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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