प्रियतम के मधुर वचन सुनने की आदी मानिनी सीता ने चिरकाल पश्चात जब प्रियतम के मुख से ऐसी अप्रिय बातें सुनीं तो वे आहत होकर हाथी की सूँड़ से आहत हुई लता की तरह आँसू बहाने लगीं।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पञ्चदशाधिकशततम: सर्ग: ॥ १ १५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ पंद्रहवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ १५॥