श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 115: सीता के चरित्र पर संदेह करके श्रीराम का उन्हें ग्रहण करने से इनकार करना और अन्यत्र जाने के लिये कहना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  6.115.24 
 
 
नहि त्वां रावणो दृष्ट्वा दिव्यरूपां मनोरमाम्।
मर्षयेत चिरं सीते स्वगृहे पर्यवस्थिताम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  सीते! तुम्हारे दिव्य सौंदर्य और मनमोहक रूप को देखकर रावण सदैव तुम्हारे बिना नहीं रह सका होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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