श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 115: सीता के चरित्र पर संदेह करके श्रीराम का उन्हें ग्रहण करने से इनकार करना और अन्यत्र जाने के लिये कहना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  6.115.19 
 
 
क: पुमांस्तु कुले जात: स्त्रियं परगृहोषिताम्।
तेजस्वी पुनरादद्यात् सुहृल्लोभेन चेतसा॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ पुरुष होगा, जो यद्यपि तेजस्वी होकर भी पराये घर में रहनेवाली स्त्री को केवल इस लोभ से कि वह मेरे साथ बहुत दिनों तक रहकर सौहार्द का संबंध स्थापित कर चुकी है, मन से भी ग्रहण कर सकेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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