कपिराज हनुमान जी वहाँ से लौटकर त्रि-देवों के राजा इन्द्र के तुल्य तेजस्वी श्रीरघुनाथजी को जनकराज की किशोरी सीताजी का दिया हुआ उत्तर यथावत क्रम से सुनाया।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे त्रयोदशाधिकशततम: सर्ग: ॥ १ १३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ तेरहवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ १३॥