श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 113: हनुमान्जी का सीताजी से बातचीत करके लौटना और उनका संदेश श्रीराम को सुनाना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  6.113.45 
 
 
पापानां वा शुभानां वा वधार्हाणामथापि वा।
कार्यं कारुण्यमार्येण न कश्चिन्नापराध्यति॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  पापी, पुण्यात्मा या फिर मौत की सजा पाने के लायक अपराधी भी क्यों न हो, श्रेष्ठ पुरुष को उन सब पर दया करनी चाहिए। क्योंकि कोई भी ऐसा प्राणी नहीं है जिससे कभी कोई अपराध न हुआ हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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