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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 113: हनुमान्जी का सीताजी से बातचीत करके लौटना और उनका संदेश श्रीराम को सुनाना
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श्लोक 42
श्लोक
6.113.42
आज्ञप्ता राक्षसेनेह राक्षस्यस्तर्जयन्ति माम्।
हते तस्मिन् न कुर्वन्ति तर्जनं मारुतात्मज॥ ४२॥
अनुवाद
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‘पवनकुमार! उस राक्षसकी आज्ञासे ही ये मुझे धमकाया करती थीं। जबसे वह मारा गया है, तबसे ये बेचारी मुझे कुछ नहीं कहती हैं। इन्होंने डराना-धमकाना छोड़ दिया है॥ ४२॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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