श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 113: हनुमान्जी का सीताजी से बातचीत करके लौटना और उनका संदेश श्रीराम को सुनाना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  6.113.23 
 
 
तवैतद् वचनं सौम्ये सारवत् स्निग्धमेव च।
रत्नौघाद् विविधाच्चापि देवराज्याद् विशिष्यते॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  सोम्ये! तेरा यह वचन अत्यंत सारगर्भित और स्नेह से ओतप्रोत है, जिसके कारण यह रत्नों के ढेर और देवताओं के साम्राज्य से भी श्रेष्ठ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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