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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 113: हनुमान्जी का सीताजी से बातचीत करके लौटना और उनका संदेश श्रीराम को सुनाना
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श्लोक 22
श्लोक
6.113.22
भर्तु: प्रियहिते युक्ते भर्तुर्विजयकांक्षिणि।
स्निग्धमेवंविधं वाक्यं त्वमेवार्हस्यनिन्दिते॥ २२॥
अनुवाद
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सती-साध्वी देवी! आप स्वामी के प्रेम और हित को सर्वोपरि रखती हैं और हमेशा उनकी विजय की कामना करती हैं। इसलिए आपके मुँह से ही ऐसा स्नेहपूर्ण वचन निकल सकता है। आपके इस वचन से मुझे जो कुछ चाहिए था, वह सब कुछ मिल गया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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