मन्दोदरी ऐसे विलाप करती जा रही थी और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसका हृदय स्नेह से पिघल रहा था। अचानक वह रोते-रोते बेहोश हो गई और उसी हालत में रावण के सीने पर गिर गई। मन्दोदरी रावण की छाती पर वैसी ही शोभा दे रही थी, जैसे शाम के लाल रंग से रंगे बादल में चमकती हुई बिजली।