श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार  »  श्लोक 86-88h
 
 
श्लोक  6.111.86-88h 
 
 
इत्येवं विलपन्ती सा बाष्पपर्याकुलेक्षणा॥ ८६॥
स्नेहोपस्कन्नहृदया तदा मोहमुपागमत्।
कश्मलाभिहता सन्ना बभौ सा रावणोरसि॥ ८७॥
संध्यानुरक्ते जलदे दीप्ता विद्युदिवोज्ज्वला।
 
 
अनुवाद
 
  मन्दोदरी ऐसे विलाप करती जा रही थी और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसका हृदय स्नेह से पिघल रहा था। अचानक वह रोते-रोते बेहोश हो गई और उसी हालत में रावण के सीने पर गिर गई। मन्दोदरी रावण की छाती पर वैसी ही शोभा दे रही थी, जैसे शाम के लाल रंग से रंगे बादल में चमकती हुई बिजली।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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