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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 75
श्लोक
6.111.75
सुकृतं दुष्कृतं च त्वं गृहीत्वा स्वां गतिं गत:।
आत्मानमनुशोचामि त्वद्विनाशेन दु:खिताम्॥ ७५॥
अनुवाद
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तुम्हारे जाने के बाद मैं अकेली रह गयी हूँ और मेरा जीवन उजाड़ हो गया है। तुमने अपने कर्मों का फल भोगा है और अब तुम अपनी उचित गति को प्राप्त हो चुके हो। तुम्हारे बिना मैं बहुत दुखी हूँ और बार-बार अपने लिए शोक मनाती हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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