वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 6: युद्ध काण्ड
»
सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार
»
श्लोक 63-64h
श्लोक
6.111.63-64h
अयं क्रीडासहायस्तेऽनाथो लालप्यते जन:॥ ६३॥
न चैनमाश्वासयसि किं वा न बहुमन्यसे।
अनुवाद
play_arrowpause
हे नाथ! आपकी क्रीड़ा में साथ देने वाली यह मंदोदरी आज अनाथ होकर विलाप कर रही है। उसे आश्वासन क्यों नहीं देते, उसे कोई सम्मान क्यों नहीं देते?
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.