श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार  »  श्लोक 62-63h
 
 
श्लोक  6.111.62-63h 
 
 
पश्येष्टदार दारांस्ते भ्रष्टलज्जावगुण्ठनान्॥ ६२॥
बहिर्निष्पतितान् सर्वान् कथं दृष्ट्वा न कुप्यसि।
 
 
अनुवाद
 
  तुम अपनी पत्नियों से बहुत प्रेम करते थे। आज तुम्हारी सभी पत्नियाँ लज्जा त्यागकर, घूँघट हटाकर बाहर निकल आई हैं। इन्हें देखकर तुम्हें क्रोध क्यों नहीं आता?
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.