पश्येष्टदार दारांस्ते भ्रष्टलज्जावगुण्ठनान्॥ ६२॥
बहिर्निष्पतितान् सर्वान् कथं दृष्ट्वा न कुप्यसि।
अनुवाद
तुम अपनी पत्नियों से बहुत प्रेम करते थे। आज तुम्हारी सभी पत्नियाँ लज्जा त्यागकर, घूँघट हटाकर बाहर निकल आई हैं। इन्हें देखकर तुम्हें क्रोध क्यों नहीं आता?