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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार
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श्लोक 58-59h
श्लोक
6.111.58-59h
साहं बन्धुजनैर्हीना हीना नाथेन च त्वया॥ ५८॥
विहीना कामभोगैश्च शोचिष्ये शाश्वती: समा:।
अनुवाद
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मैं अब बन्धुओं से रहित हो गई हूँ, तुम्हारे जैसे स्वामी से भी वंचित हूँ और कामभोगों का आनन्द भी नहीं ले सकती। अब मैं अनगिनत वर्षों तक शोक में डूबकर रहूँगी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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