श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  6.111.22-23 
 
 
सीतां सर्वानवद्याङ्गीमरण्ये विजने शुभाम्।
आनयित्वा तु तां दीनां छद्मनाऽऽत्मस्वदूषणम्॥ २२॥
अप्राप्य तं चैव कामं मैथिलीसंगमे कृतम्।
पतिव्रतायास्तपसा नूनं दग्धोऽसि मे प्रभो॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रभो ! सीता जी तो सारे अंगों से सुंदर और शुभ लक्षणों से युक्त थीं, फिर उन्हें निर्जन वन में रहना पड़ा। आप छल से उन्हें दुःख में डालकर अपने पास ले आए। यह आपके लिए बहुत बड़ा कलंक है। मिथिला की राजकुमारी के साथ जिस कामना से आपने उनको प्राप्त करना चाहा था, वह तो आपको मिली नहीं। उल्टा, उस पतिव्रता देवी के तप से आप जलकर भस्म हो गए। निश्चित ही ऐसा ही हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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