श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार  »  श्लोक 20-21
 
 
श्लोक  6.111.20-21 
 
 
अरुन्धत्या विशिष्टां तां रोहिण्याश्चापि दुर्मते॥ २०॥
सीतां धर्षयता मान्यां त्वया ह्यसदृशं कृतम्।
वसुधाया हि वसुधां श्रिया: श्रीं भर्तृवत्सलाम्॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  दुर्मते! भगवती सीता अरुन्धती और रोहिणी से भी बढ़कर पतिव्रता हैं। वे पृथ्वी की भी पृथ्वी और लक्ष्मी की भी लक्ष्मी हैं। अपने पति के प्रति एकनिष्ठ प्रेम रखने वाली और सभी की पूजनीय सीतादेवी का अपमान करके तुमने बहुत अनुचित काम किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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