श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार  »  श्लोक 124
 
 
श्लोक  6.111.124 
 
 
ततो विमुक्त्वा सशरं शरासनं
महेन्द्रदत्तं कवचं स तन्महत्।
विमुच्य रोषं रिपुनिग्रहात् ततो
राम: स सौम्यत्वमुपागतोऽरिहा॥ १२४॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनन्तर इन्द्र के दिए हुए बाणों से भरा धनुष और विशाल कवच शत्रु का दमन करने के कारण रोष को छोड़कर राम ने शान्त भाव धारण कर लिया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामाय णे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे एकादशाधिकशततम: सर्ग: ॥ १ ११॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ ग्यारहवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ११॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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