ततो विमुक्त्वा सशरं शरासनं
महेन्द्रदत्तं कवचं स तन्महत्।
विमुच्य रोषं रिपुनिग्रहात् ततो
राम: स सौम्यत्वमुपागतोऽरिहा॥ १२४॥
अनुवाद
तदनन्तर इन्द्र के दिए हुए बाणों से भरा धनुष और विशाल कवच शत्रु का दमन करने के कारण रोष को छोड़कर राम ने शान्त भाव धारण कर लिया।
इत्यार्षे श्रीमद्रामाय णे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे एकादशाधिकशततम: सर्ग: ॥ १ ११॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ ग्यारहवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ११॥