श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार  »  श्लोक 117-118
 
 
श्लोक  6.111.117-118 
 
 
शास्त्रदृष्टेन विधिना महर्षिविहितेन च।
तत्र मेध्यं पशुं हत्वा राक्षसेन्द्रस्य राक्षसा:॥ ११७॥
परिस्तरणिकां राज्ञो घृताक्तां समवेशयन्।
गन्धैर्माल्यैरलंकृत्य रावणं दीनमानसा:॥ ११८॥
 
 
अनुवाद
 
  वेदोक्त विधि और महर्षियों द्वारा बनाये गए कल्पसूत्रों के निर्देशों का पालन करते हुए, राक्षसों ने राजा रावण की चिता पर एक मेध्य पशु की बलि दी। उन्होंने चिता पर रखे हुए मृगचर्म को घी से सराबोर कर दिया और रावण के शरीर को चन्दन और फूलों से सजाया। उनके मन दुःख से भर गए और वे चुपचाप खड़े रहे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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