श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 111: मन्दोदरी का विलाप तथा रावण के शव का दाह-संस्कार  »  श्लोक 104-106h
 
 
श्लोक  6.111.104-106h 
 
 
शकटान् दारुरूपाणि अग्नीन् वै याजकांस्तथा॥ १०४॥
तथा चन्दनकाष्ठानि काष्ठानि विविधानि च।
अगरूणि सुगन्धीनि गन्धांश्च सुरभींस्तथा॥ १०५॥
मणिमुक्ताप्रवालानि निर्यापयति राक्षस:।
 
 
अनुवाद
 
  इसके बाद शकट, लकड़ियाँ, यज्ञ में प्रयुक्त होने वाली अग्नियाँ, यज्ञ कराने वाले पुरोहित, चन्दन काष्ठ, अनेकों प्रकार की सुगंधित लकड़ियाँ, अगरु, अन्य सुगन्धित पदार्थ, मणि, मोती और मूंगे आदि सभी वस्तुओं को उसने इकट्ठा किया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.