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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 25
श्लोक
6.110.25
नैवार्थेन च कामेन विक्रमेण न चाज्ञया।
शक्या दैवगतिर्लोके निवर्तयितुमुद्यता॥ २५॥
अनुवाद
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संसार में कर्मों के फल देने के लिए प्रवृत्त हुई दैव की गति को कोई भी धन-संपदा से, अपनी इच्छाओं से, शक्ति से, किसी के आदेश या अधिकार से नहीं रोक सकता।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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