श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 109: विभीषण का विलाप और श्रीराम का उन्हें समझाकर रावण के अन्त्येष्टि संस्कार के लिये आदेश देना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.109.25 
 
 
मरणान्तानि वैराणि निर्वृत्तं न: प्रयोजनम्।
क्रियतामस्य संस्कारो ममाप्येष यथा तव॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  उन्होंने कहा - "विभीषण! वैर जीवन-काल तक बना रहता है, लेकिन मरने के बाद यह समाप्त हो जाता है। अब जब हमारा उद्देश्य पूरा हो गया है, तो अब तुम इसका संस्कार करो। यह अभी तुम्हारे प्रेम का पात्र है और उसी तरह मेरे लिए भी स्नेह का विषय है।"
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे नवाधिकशततम: सर्ग ॥ १ ०९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ नवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ०९॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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