उन्होंने कहा - "विभीषण! वैर जीवन-काल तक बना रहता है, लेकिन मरने के बाद यह समाप्त हो जाता है। अब जब हमारा उद्देश्य पूरा हो गया है, तो अब तुम इसका संस्कार करो। यह अभी तुम्हारे प्रेम का पात्र है और उसी तरह मेरे लिए भी स्नेह का विषय है।"
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे नवाधिकशततम: सर्ग ॥ १ ०९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ नवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ०९॥