श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 109: विभीषण का विलाप और श्रीराम का उन्हें समझाकर रावण के अन्त्येष्टि संस्कार के लिये आदेश देना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  6.109.23 
 
 
एषोऽहिताग्निश्च महातपाश्च
वेदान्तग: कर्मसु चाग्रॺशूर:।
एतस्य यत् प्रेतगतस्य कृत्यं
तत् कर्तुमिच्छामि तव प्रसादात्॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  यह रावण महान तपस्वी, अग्निहोत्र करने वाला, वेदांत का ज्ञाता और कर्मों में श्रेष्ठ शूर तथा परम कर्मठ रहा है। अब यह प्रेतभाव को प्राप्त हुआ है, इसलिए अब मैं ही आपकी कृपा से इसका प्रेत-कृत्य करना चाहता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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