इयं हि पूर्वै: संदिष्टा गति: क्षत्रियसम्मता।
क्षत्रियो निहत: संख्ये न शोच्य इति निश्चय:॥ १८॥
अनुवाद
रावण जिस प्रकार मृत्यु को प्राप्त हुआ, वह पूर्वकाल के महापुरुषों द्वारा बताई गई श्रेष्ठ गति है। क्षत्रिय धर्म का पालन करने वाले वीरों के लिए तो यह अत्यंत सम्माननीय है। शास्त्रों के अनुसार, युद्ध में मारा गया क्षत्रिय वीर शोक के योग्य नहीं होता है।