श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 109: विभीषण का विलाप और श्रीराम का उन्हें समझाकर रावण के अन्त्येष्टि संस्कार के लिये आदेश देना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  6.109.14 
 
 
नायं विनष्टो निश्चेष्ट: समरे चण्डविक्रम:।
अत्युन्नतमहोत्साह: पतितोऽयमशङ्कित:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  विभीषण! रावण समरांगण में असमर्थ होकर नहीं मारा गया है। उसने प्रचंड पराक्रम प्रकट किया है, उसका उत्साह बहुत बढ़ा हुआ था। उसे मृत्यु से कोई भय नहीं था। भाग्यवश वह रणभूमि में धराशायी हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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