तत: प्रजग्मु: प्रशमं मरुद्गणा
दिश: प्रसेदुर्विमलं नभोऽभवत्।
मही चकम्पे न च मारुतो ववौ
स्थिरप्रभश्चाप्यभवद् दिवाकर:॥ ३२॥
अनुवाद
तदुपरांत देवताओं को अत्यधिक शांति प्राप्त हुई, चहुँ दिशाएँ प्रसन्न हो गईं - उनमें प्रकाश फैल गया, आकाश निर्मल हो गया, पृथ्वी का काँपना रुक गया, वायु स्वाभाविक गति से बहने लगी और सूर्य का प्रकाश भी स्थिर हो गया।