श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 107: श्रीराम और रावण का घोर युद्ध  »  श्लोक 59-61
 
 
श्लोक  6.107.59-61 
 
 
मारीचो निहतो यैस्तु खरो यैस्तु सदूषण:॥ ५९॥
क्रौञ्चावटे विराधस्तु कबन्धो दण्डकावने।
यै: साला गिरयो भग्ना वाली च क्षुभितोऽम्बुधि:॥ ६०॥
त इमे सायका: सर्वे युद्धे प्रात्ययिका मम।
किं नु तत् कारणं येन रावणे मन्दतेजस:॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
 
  मैंने जिन वाणों से खर, दूषण, मारीच का वध किया, क्रौंचवन में विराध और दंडकारण्य में कबंध को मृत्यु के घाट उतारा, साल वृक्ष और पर्वतों को विदीर्ण किया, वाली का अंत किया और समुद्र को भी क्षुब्ध कर दिया। संग्राम में कई बार परीक्षण से जिनकी अमोघता सिद्ध कर ली गई है, वे ही ये मेरे सब सायक आज रावण पर निस्तेज हो रहे हैं; उसका क्या कारण हो सकता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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