तदनंतर रघुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाले महाबाहु श्रीरामचन्द्रजी ने क्रोधित होकर अपने धनुष पर विषधर सर्प के समान बाण चढ़ाया और उसके द्वारा रावण का सुंदर, जगमगाते हुए कुण्डलों से युक्त एक सिर काट डाला। उसका वह कटा हुआ सिर उस समय पृथ्वी पर गिर पड़ा, जिसे तीनों लोकों के प्राणियों ने देखा।