श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 107: श्रीराम और रावण का घोर युद्ध  »  श्लोक 53-54
 
 
श्लोक  6.107.53-54 
 
 
तत: क्रोधान्महाबाहू रघूणां कीर्तिवर्धन:।
संधाय धनुषा राम: शरमाशीविषोपमम्॥ ५३॥
रावणस्य शिरोऽच्छिन्दच्छ्रीमज्ज्वलितकुण्डलम्।
तच्छिर: पतितं भूमौ दृष्टं लोकैस्त्रिभिस्तदा॥ ५४॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर रघुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाले महाबाहु श्रीरामचन्द्रजी ने क्रोधित होकर अपने धनुष पर विषधर सर्प के समान बाण चढ़ाया और उसके द्वारा रावण का सुंदर, जगमगाते हुए कुण्डलों से युक्त एक सिर काट डाला। उसका वह कटा हुआ सिर उस समय पृथ्वी पर गिर पड़ा, जिसे तीनों लोकों के प्राणियों ने देखा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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