श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 107: श्रीराम और रावण का घोर युद्ध  »  श्लोक 16-18
 
 
श्लोक  6.107.16-18 
 
 
तेषामसम्भ्रमं दृष्ट्वा वाजिनां रावणस्तदा॥ १६॥
भूय एव सुसंक्रुद्ध: शरवर्षं मुमोच ह।
गदाश्च परिघांश्चैव चक्राणि मुसलानि च॥ १७॥
गिरिशृङ्गाणि वृक्षांश्च तथा शूलपरश्वधान्।
मायाविहितमेतत् तु शस्त्रवर्षमपातयत्।
सहस्रशस्तदा बाणानश्रान्तहृदयोद्यम:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण ने देखा कि हनुमान और सुग्रीव सहित वानर दल उसके बल शौर्य से तनिक भी नहीं घबराया है, इससे उसका क्रोध और भड़क उठा। उसने फिर से अपने धनुष पर तीरों की वर्षा शुरू कर दी। वह गदा, चक्र, परिघ, मूसल, पर्वत की चोटियाँ, पेड़, शूल, फरसे और अपनी माया से बनाए हुए अनेक प्रकार के अस्त्रों की वर्षा करने लगा। उसने अपने हृदय में थकान का अनुभव न करते हुए सहस्रों बाण चलाए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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