रावण ने देखा कि हनुमान और सुग्रीव सहित वानर दल उसके बल शौर्य से तनिक भी नहीं घबराया है, इससे उसका क्रोध और भड़क उठा। उसने फिर से अपने धनुष पर तीरों की वर्षा शुरू कर दी। वह गदा, चक्र, परिघ, मूसल, पर्वत की चोटियाँ, पेड़, शूल, फरसे और अपनी माया से बनाए हुए अनेक प्रकार के अस्त्रों की वर्षा करने लगा। उसने अपने हृदय में थकान का अनुभव न करते हुए सहस्रों बाण चलाए।