श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 104: रावण का सारथि को फटकारना और सारथि का अपने उत्तर से रावण को संतुष्ट करके उसके रथ को रणभूमि में पहुँचाना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  6.104.26 
 
 
एवमुक्त्वा रथस्थस्य रावणो राक्षसेश्वर:।
ददौ तस्य शुभं ह्येकं हस्ताभरणमुत्तमम्।
श्रुत्वा रावणवाक्यानि सारथि: संन्यवर्तत॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसों के राजा रावण ने ऐसा कहकर अपने रथ के सारथि को पुरस्कार के रूप में अपने हाथ से एक सुंदर आभूषण उतारकर दे दिया। रावण के आदेश को सुनकर सारथि ने रथ को वापस मोड़ दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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