श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 102: इन्द्र के भेजे हुए रथ पर बैठकर श्रीराम का रावण के साथ युद्ध करना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  6.102.21 
 
 
ते रावणधनुर्मुक्ता: शरा: काञ्चनभूषणा:।
अभ्यवर्तन्त काकुत्स्थं सर्पा भूत्वा महाविषा:॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  सर्व दिशाओं से रावण के धनुष से छूटे हुए सोने के आभूषणों से सुशोभित बाण, महाविषैले सर्पों के रूप में बदलकर श्रीरामचंद्रजी के निकट पहुँचने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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