यदि वधमिच्छसि रावणस्य संख्ये
यदि च कृतां हि तवेच्छसि प्रतिज्ञाम्।
यदि तव राजसुताभिलाष आर्य
कुरु च वचो मम शीघ्रमद्य वीर॥ ५६॥
अनुवाद
‘आर्य! वीरवर! यदि आप युद्धमें रावणका वध करना चाहते हैं, यदि आपके मनमें अपनी प्रतिज्ञाके पूरी करनेकी इच्छा है तथा आप राजकुमारी सीताको पानेकी अभिलाषा रखते हैं तो आज शीघ्र ही रावणको मारकर मेरी प्रार्थना सफल करें’॥ ५६॥
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे एकाधिकशततम: सर्ग: ॥ १ ०१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ एकवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ ०१॥