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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 101: श्रीराम का विलाप तथा हनुमान्जी की लायी हुर्इ ओषधि के सुषेण द्वारा किये गये प्रयोग से लक्ष्मण का सचेत हो उठना
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श्लोक 55
श्लोक
6.101.55
अहं तु वधमच्छामि शीघ्रमस्य दुरात्मन:।
यावदस्तं न यात्येष कृतकर्मा दिवाकर:॥ ५५॥
अनुवाद
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मैं उस दुरात्मा रावण का वध शीघ्र से शीघ्र देखना चाहता हूँ, इससे पहले कि सूर्यदेव अपने दिनभर के भ्रमण कार्य को पूरा करके अस्ताचल को चले जाएँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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