नैव पञ्चत्वमापन्नो लक्ष्मणो लक्ष्मिवर्धन:॥ २५॥
नह्यस्य विकृतं वक्त्रं न च श्यामत्वमागतम्।
सुप्रभं च प्रसन्नं च मुखमस्य निरीक्ष्यताम्॥ २६॥
अनुवाद
तुम्हारे भाई शोभावर्द्धक लक्ष्मण नहीं मरे हैं, देखो इनके मुख का सौंदर्य अभी भी बना हुआ है और इनके चेहरे पर कोई कालापन नहीं आया है। देखो, इनका मुख प्रसन्न और कांतिमान दिख रहा है।