श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 101: श्रीराम का विलाप तथा हनुमान्जी की लायी हुर्इ ओषधि के सुषेण द्वारा किये गये प्रयोग से लक्ष्मण का सचेत हो उठना  »  श्लोक 25-26
 
 
श्लोक  6.101.25-26 
 
 
नैव पञ्चत्वमापन्नो लक्ष्मणो लक्ष्मिवर्धन:॥ २५॥
नह्यस्य विकृतं वक्त्रं न च श्यामत्वमागतम्।
सुप्रभं च प्रसन्नं च मुखमस्य निरीक्ष्यताम्॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम्हारे भाई शोभावर्द्धक लक्ष्मण नहीं मरे हैं, देखो इनके मुख का सौंदर्य अभी भी बना हुआ है और इनके चेहरे पर कोई कालापन नहीं आया है। देखो, इनका मुख प्रसन्न और कांतिमान दिख रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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