श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 100: राम और रावण का युद्ध, रावण की शक्ति से लक्ष्मण का मूर्च्छित होना तथा रावण का युद्ध से भागना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  6.100.47 
 
 
पापात्मायं दशग्रीवो वध्यतां पापनिश्चय:।
कांक्षितं चातकस्येव घर्मान्ते मेघदर्शनम्॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘इस पापात्मा एवं पापपूर्ण विचार रखनेवाले दशमुख रावणको अब मार डाला जाय, यही उचित है। जैसे पपीहेको ग्रीष्म-ऋतुके अन्तमें मेघके दर्शनकी इच्छा रहती है, उसी प्रकार मैं भी इसका वध करनेके लिये चिरकालसे इसे देखना चाहता हूँ॥ ४७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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