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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 100: राम और रावण का युद्ध, रावण की शक्ति से लक्ष्मण का मूर्च्छित होना तथा रावण का युद्ध से भागना
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श्लोक 30-31
श्लोक
6.100.30-31
इत्येवमुक्त्वा तां शक्तिमष्टघण्टां महास्वनाम्।
मयेन मायाविहिताममोघां शत्रुघातिनीम्॥ ३०॥
लक्ष्मणाय समुद्दिश्य ज्वलन्तीमिव तेजसा।
रावण: परमक्रुद्धश्चिक्षेप च ननाद च॥ ३१॥
अनुवाद
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ऐसा कहकर अत्यन्त कुपित हुए रावण ने मयासुर की माया से निर्मित, आठ घंटियों से विभूषित और महाभयंकर शब्द करनेवाली उस अमोघ व शत्रुघातिनी शक्ति को, जो अपने तेज से प्रज्वलित हो रही थी, लक्ष्मण को लक्ष्य करके चला दिया और बड़े जोर से गर्जना की।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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