पुनश्च सोऽचिन्तयदात्तरूपो
ध्रुवं विशिष्टा गुणतो हि सीता।
अथायमस्यां कृतवान् महात्मा
लंकेश्वर: कष्टमनार्यकर्म॥ ७३॥
अनुवाद
तब रावण ने फिर से सोचा कि निश्चय ही सीता इन सबसे गुणों में बहुत ही बढ़कर हैं। इस तरह महाबली लंकापति ने मायावी रूप धारण करके सीता को धोखा देकर उनके प्रति अपहरण के रूप में यह महान कष्टप्रद नीच कर्म किया है।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे नवम: सर्ग:॥ ९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें नवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ९॥