श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 9: हनुमान जी का रावण के श्रेष्ठ भवन पुष्पक विमान तथा रावण के रहने की सुन्दर हवेली को देखकर उसके भीतर सोयी हुई सहस्रों सुन्दरी स्त्रियों का अवलोकन करना  »  श्लोक 73
 
 
श्लोक  5.9.73 
 
 
पुनश्च सोऽचिन्तयदात्तरूपो
ध्रुवं विशिष्टा गुणतो हि सीता।
अथायमस्यां कृतवान् महात्मा
लंकेश्वर: कष्टमनार्यकर्म॥ ७३॥
 
 
अनुवाद
 
  तब रावण ने फिर से सोचा कि निश्चय ही सीता इन सबसे गुणों में बहुत ही बढ़कर हैं। इस तरह महाबली लंकापति ने मायावी रूप धारण करके सीता को धोखा देकर उनके प्रति अपहरण के रूप में यह महान कष्टप्रद नीच कर्म किया है।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे नवम: सर्ग:॥ ९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें नवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ९॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.