न तत्र काश्चित् प्रमदा: प्रसह्य
वीर्योपपन्नेन गुणेन लब्धा:।
न चान्यकामापि न चान्यपूर्वा
विना वरार्हां जनकात्मजां तु॥ ७०॥
अनुवाद
वहाँ ऐसी कोई स्त्रियाँ नहीं थीं जिन्हें बल-पराक्रम से संपन्न होने के बावजूद भी रावण अपनी इच्छा के विरुद्ध बलात् हर कर लाया हो। वे सब अपनी इच्छा से ही रावण को उपलब्ध हुई थीं। वहां जनककिशोरी सीता को छोड़कर कोई ऐसी स्त्री नहीं थी जो रावण के अलावा किसी दूसरे की इच्छा रखने वाली हो अथवा जिसका पहले कोई दूसरा पति रहा हो।