श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 9: हनुमान जी का रावण के श्रेष्ठ भवन पुष्पक विमान तथा रावण के रहने की सुन्दर हवेली को देखकर उसके भीतर सोयी हुई सहस्रों सुन्दरी स्त्रियों का अवलोकन करना  »  श्लोक 67
 
 
श्लोक  5.9.67 
 
 
रावणे सुखसंविष्टे ता: स्त्रियो विविधप्रभा:।
ज्वलन्त: काञ्चना दीपा: प्रेक्षन्तो निमिषा इव॥ ६७॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के सुख पूर्वक सो जाने पर वहाँ जलते हुए सुवर्णमय प्रदीप उन अनेक प्रकार की कान्ति वाली कामिनियों को मानो एकटक दृष्टि से देख रहे थे। मानो वे प्रदीप भी उन कामिनियों के सौंदर्य पर मुग्ध थे और उनकी सुंदरता का आनंद ले रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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