श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 9: हनुमान जी का रावण के श्रेष्ठ भवन पुष्पक विमान तथा रावण के रहने की सुन्दर हवेली को देखकर उसके भीतर सोयी हुई सहस्रों सुन्दरी स्त्रियों का अवलोकन करना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  5.9.47 
 
 
अकुण्डलधराश्चान्या विच्छिन्नमृदितस्रज:।
गजेन्द्रमृदिता: फुल्ला लता इव महावने॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  कुछ नायिकाओं ने कानों के कुंडल खो दिए थे, वहीं कुछ की पुष्पमालाएँ कुचलकर तोड़ दी गई थीं। वे महान वन में एक विशाल हाथी द्वारा कुचले गए फूलों वाली लताओं की तरह दिखाई पड़ती थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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