श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 68: हनुमान जी का सीता के संदेह और अपने द्वारा उनके निवारण का वृत्तान्त बताना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  5.68.23 
 
 
तदलं परितापेन देवि मन्युरपैतु ते।
एकोत्पातेन ते लङ्कामेष्यन्ति हरियूथपा:॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘अत: देवि! अब संताप करनेकी आवश्यकता नहीं है। आपका मानसिक दु:ख दूर हो जाना चाहिये। वे वानरयूथपति एक ही छलाँगमें लङ्कामें पहुँच जायँगे॥ २३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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