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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 67: हनुमान जी का भगवान् श्रीराम को सीता का संदेश सुनाना
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श्लोक 23-24h
श्लोक
5.67.23-24h
ममैव दुष्कृतं किंचिन्महदस्ति न संशय:॥ २३॥
समर्थौ सहितौ यन्मां न रक्षेते परंतपौ।
अनुवाद
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नि:संदेह मेरे द्वारा ही कोई बड़ा पाप किया गया है, जिसके कारण वे दोनों शत्रुओं को दंडित करने वाले वीर एक साथ रहकर भी मेरी रक्षा करने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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