नह्यन्य: कर्मणो हेतु: साधनेऽस्य हनूमत:।
हनूमतीह सिद्धिश्च मतिश्च मतिसत्तम॥ ३३॥
व्यवसायश्च शौर्यं च श्रुतं चापि प्रतिष्ठितम्।
जाम्बवान् यत्र नेता स्यादङ्गदश्च हरीश्वर:॥ ३४॥
हनूमांश्चाप्यधिष्ठाता न तत्र गतिरन्यथा।
अनुवाद
पवननंदन! बुद्धिमानों में श्रेष्ठ रघुनंदन! हनुमान जी के अतिरिक्त किसी और के द्वारा यह कार्य सिद्ध हो सकता हो, ऐसा सम्भव ही नहीं है। वानरों में श्रेष्ठ हनुमान में ही कार्यसिद्धि की शक्ति और बुद्धि है। केवल उन्हीं में उद्योग, पराक्रम और शास्त्र ज्ञान भी प्रतिष्ठित है। जिस दल के नेता जाम्बवान और महापराक्रमी अंगद हों और अधिष्ठाता हनुमान हों, उस दल का असफल होना सम्भव ही नहीं है।