श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 64: दधिमुख से सुग्रीव का संदेश सुनकर अङ्गद-हनुमान् आदि वानरों का किष्किन्धा में पहुँचना और हनमान जी का श्रीराम को प्रणाम करके सीता देवी के दर्शन का समाचार बताना  »  श्लोक 33-35h
 
 
श्लोक  5.64.33-35h 
 
 
नह्यन्य: कर्मणो हेतु: साधनेऽस्य हनूमत:।
हनूमतीह सिद्धिश्च मतिश्च मतिसत्तम॥ ३३॥
व्यवसायश्च शौर्यं च श्रुतं चापि प्रतिष्ठितम्।
जाम्बवान् यत्र नेता स्यादङ्गदश्च हरीश्वर:॥ ३४॥
हनूमांश्चाप्यधिष्ठाता न तत्र गतिरन्यथा।
 
 
अनुवाद
 
  पवननंदन! बुद्धिमानों में श्रेष्ठ रघुनंदन! हनुमान जी के अतिरिक्त किसी और के द्वारा यह कार्य सिद्ध हो सकता हो, ऐसा सम्भव ही नहीं है। वानरों में श्रेष्ठ हनुमान में ही कार्यसिद्धि की शक्ति और बुद्धि है। केवल उन्हीं में उद्योग, पराक्रम और शास्त्र ज्ञान भी प्रतिष्ठित है। जिस दल के नेता जाम्बवान और महापराक्रमी अंगद हों और अधिष्ठाता हनुमान हों, उस दल का असफल होना सम्भव ही नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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