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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 5: सुन्दर काण्ड
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सर्ग 63: दधिमुख से मधुवन के विध्वंस का समाचार सुनकर सुग्रीव का हनुमान् आदि वानरों की सफलता के विषय में अनुमान
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श्लोक 1
श्लोक
5.63.1
ततो मूर्ध्ना निपतितं वानरं वानरर्षभ:।
दृष्ट्वैवोद्विग्नहृदयो वाक्यमेतदुवाच ह॥ १॥
अनुवाद
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तो फिर हनुमान को प्रणाम करते देख वानरों के सरदार सुग्रीव का हृदय उद्विग्न हो गया। वे उनसे इस प्रकार बोले-।।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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