नखैस्तुदन्तो दशनैर्दशन्त-
स्तलैश्च पादैश्च समापयन्त:।
मदात् कपिं ते कपय: समन्ता-
न्महावनं निर्विषयं च चक्रु:॥ २४॥
अनुवाद
मद के नशे में चूर उन वानरों ने अपने दांतों से दधिमुख काटकर, नखों से नोचकर और उसे चांटे और लातों से मारकर अधमरा कर दिया है। इस प्रकार उन्होंने उस विशाल वन को सभी तरफ से फलों और अन्य चीजों से रहित कर दिया है।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये सुन्दरकाण्डे एकषष्टितम: सर्ग:॥ ६१॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके सुन्दरकाण्डमें इकसठवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ६१॥