श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 61: वानरों का मधुवन में जाकर वहाँ के मधु एवं फलों का मनमाना उपभोग करना और वनरक्षक को घसीटना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  5.61.19 
 
 
तुदन्तमन्य: प्रणदन्नुपैति
समाकुलं तत् कपिसैन्यमासीत्।
न चात्र कश्चिन्न बभूव मत्तो
न चात्र कश्चिन्न बभूव दृप्त:॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  उत्तर: प्रत्येक वानर दूसरे को दुख देता था और वह बड़े जोर से गर्जना करता हुआ उसके पास आता था। इस प्रकार पूरी वानर सेना उन्मत्त होकर यही सब कर रही थी। वानरों के उस समुदाय में एक भी ऐसा नहीं था, जो मदोन्मत्त न हो और कोई भी ऐसा नहीं था, जो घमंड से न भरा हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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