तुदन्तमन्य: प्रणदन्नुपैति
समाकुलं तत् कपिसैन्यमासीत्।
न चात्र कश्चिन्न बभूव मत्तो
न चात्र कश्चिन्न बभूव दृप्त:॥ १९॥
अनुवाद
उत्तर: प्रत्येक वानर दूसरे को दुख देता था और वह बड़े जोर से गर्जना करता हुआ उसके पास आता था। इस प्रकार पूरी वानर सेना उन्मत्त होकर यही सब कर रही थी। वानरों के उस समुदाय में एक भी ऐसा नहीं था, जो मदोन्मत्त न हो और कोई भी ऐसा नहीं था, जो घमंड से न भरा हो।