श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 59: हनुमान जी का सीता की दुरवस्था बताकर वानरों को लङ्का पर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित करना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  5.59.22 
 
 
राक्षसीभि: परिवृता शोकसंतापकर्शिता।
मेघरेखापरिवृता चन्द्ररेखेव निष्प्रभा॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  राक्षसियों से घिरी हुई सीता जी शोक और संताप से दुर्बल होती जा रही हैं। वे बादलों की पंक्ति से घिरी हुई चंद्रमा की किरणों की तरह अपनी चमक खो चुकी हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.