श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 59: हनुमान जी का सीता की दुरवस्था बताकर वानरों को लङ्का पर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित करना  »  श्लोक 12-13
 
 
श्लोक  5.59.12-13 
 
 
भवतामननुज्ञातो विक्रमो मे रुणद्धि माम्॥ १२॥
सागरोऽप्यतियाद् वेलां मन्दर: प्रचलेदपि।
न जाम्बवन्तं समरे कम्पयेदरिवाहिनी॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  आपलोगों की आज्ञा के बिना मेरा पुरुषार्थ मुझे रोक रहा है। समुद्र अपने तट को पार कर जा सकता है और मंदराचल पर्वत अपने स्थान से हट सकता है, परंतु युद्ध के मैदान में शत्रुओं की सेना जाम्बवान को विचलित नहीं कर सकती।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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