श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 5: सुन्दर काण्ड  »  सर्ग 58: जाम्बवान् के पूछने पर हनुमान जी का अपनी लङ्का यात्रा का सारा वृत्तान्त सुनाना  »  श्लोक 15-16
 
 
श्लोक  5.58.15-16 
 
 
छन्दत: पृथिवीं चेरुर्बाधमाना: समन्तत:।
श्रुत्वा नगानां चरितं महेन्द्र: पाकशासन:॥ १५॥
वज्रेण भगवान् पक्षौ चिच्छेदैषां सहस्रश:।
अहं तु मोचितस्तस्मात् तव पित्रा महात्मना॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  वे समस्त प्रजा को पीड़ा पहुँचाते हुए अपनी इच्छा के अनुसार इधर-उधर भटकते रहते थे। पर्वतों के ऐसे आचरण को सुनकर देवराज इन्द्र ने अपने वज्र से उन हजारों पर्वतों के पंख काट दिए; परंतु उस समय आपके महान पिता ने मुझे इंद्र के हाथ से बचा लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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